बसन्त पंचमी के दिन अपनी जन्मस्थली खितौरा जिला इटावा लगभग बीस गाड़ियों
के साथ पहुंचने पर चारों तरफ के गांवों से नर-नारियों, बच्चे-बच्चियां
दर्षन के लिए जयगुरूदेव जन्मस्थली पहुंचने लगे। कल अपने संक्षिप्त संदेष
में बाबा जी ने ग्रामवासियों से कहा कि महात्मा के पास आने पर रास्ता
लेकर अगर कोई जीव भजन नहीं करता है और गलती करता है और बात नहीं मानता है
तो उसका कर्म भुगतान कराने के लिए वे उसे फिर से मानव जन्म दिला कर कर्म
भुगतान कराते हैं मगर उसकी डोर छोड़ते नहीं हैं। कभी-कभी वे उसे चैरासी
लाख यानियों में से किसी योनि में भी उतार देते हैं। रामायण में गोस्वामी
जी ने कागभुषुण्डि-गरूण संवाद में सब कुछ विस्तार से समझाया है। कर्मों
का भुगतान कराकर यहां तक उस जीव से भजन करा लेते हैं।
कलयुग की चर्चा करते हुए कागभुषुण्डि ने कहा कि छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, नर-
नारी सब अधर्म मंे लिप्त हो जाते हैं, किसी को किसी का डर नहीं रहता है।
ऐसे स्वेच्छाचारी लोग सुख की तलाष में इधर-उधर भागने लगते हैं और धर्म को
छोड़कर चरित्र गवां देते हैं। फिर नियत खराब कर, धोखे-फरेब, बेइमानी से धन
इकटठा कर लेते हैं और सोचते हैं कि हम सुखी होंगे और उज्जवल भविष्य रहेगा
पर ऐसा होने वाला नहीं।
जनता के विचार
देष के नेताओं ने देष के साथ गद्दारी करके विदेषी बैंकों को भर लिया है
और सोच रहे हैं कि कई पुष्तें आराम से बैठकर खायेंगे। पहले भी लोगों ने
सुनहरे सपने संजोये और कुछ लोग तो ऐसेे चले गए कि मुंह में एक बंूद पानी
डालने का भी मौका नहीं मिला। आज विदेषी खातों को लेकर उहापोह मची हुई है
और कहते हैं कि विदेषों से हमारी संधि है कि जिनका धन जमा है उनका नाम
नहीं बतायेंगे। एक प्रष्न ये उठता है कि अगर चोरों के नाम जनता नहीं
जानेगी तो उसे कैसे मालूम होगा कि सजा किसको दी जाएगी। अधर्म में अबके
विचार बदल गए।
मदिरा के नषे में सोचते हैं कि अपना धन पराया धन कोई फर्क नहीं, अपनी
स्त्री पराई स्त्री कोई फर्क नहीं। ऐसा अभेदवाद आता है। तो कृष्ण भगवान
ने कहा कि वर्णशंकरता बढ़ जाती है फिर किसी का दिल-दिमाग सही नहीं रहता।
बच्चे मारो, औरत मारो, आदमी मारो, पशु-पक्षी मारो, लूट लो और जो चाहे सो
करो काई लगाम नहीं। कुर्सी वालों को कुर्सी चाहिए। जिसको कुर्सी मिल गई
और जिसे नहीं मिली वह पाने की होड़ में दौड़ रहा है। प्रजा को कौन पूछता
है ? त्राहिमाम् मची हुई है। सबकी निगाहें ऊपर आसमान की तरफ उठ गई है।
आराम और शान्ति कैसे मिलेगी ? काग भुशुण्डि के शब्दों मेंः?
निज अनुभव मैं कहेंउं खगेशा।
बिन हरि भजन न जाहिं कलेशा।।
के साथ पहुंचने पर चारों तरफ के गांवों से नर-नारियों, बच्चे-बच्चियां
दर्षन के लिए जयगुरूदेव जन्मस्थली पहुंचने लगे। कल अपने संक्षिप्त संदेष
में बाबा जी ने ग्रामवासियों से कहा कि महात्मा के पास आने पर रास्ता
लेकर अगर कोई जीव भजन नहीं करता है और गलती करता है और बात नहीं मानता है
तो उसका कर्म भुगतान कराने के लिए वे उसे फिर से मानव जन्म दिला कर कर्म
भुगतान कराते हैं मगर उसकी डोर छोड़ते नहीं हैं। कभी-कभी वे उसे चैरासी
लाख यानियों में से किसी योनि में भी उतार देते हैं। रामायण में गोस्वामी
जी ने कागभुषुण्डि-गरूण संवाद में सब कुछ विस्तार से समझाया है। कर्मों
का भुगतान कराकर यहां तक उस जीव से भजन करा लेते हैं।
कलयुग की चर्चा करते हुए कागभुषुण्डि ने कहा कि छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, नर-
नारी सब अधर्म मंे लिप्त हो जाते हैं, किसी को किसी का डर नहीं रहता है।
ऐसे स्वेच्छाचारी लोग सुख की तलाष में इधर-उधर भागने लगते हैं और धर्म को
छोड़कर चरित्र गवां देते हैं। फिर नियत खराब कर, धोखे-फरेब, बेइमानी से धन
इकटठा कर लेते हैं और सोचते हैं कि हम सुखी होंगे और उज्जवल भविष्य रहेगा
पर ऐसा होने वाला नहीं।
जनता के विचार
देष के नेताओं ने देष के साथ गद्दारी करके विदेषी बैंकों को भर लिया है
और सोच रहे हैं कि कई पुष्तें आराम से बैठकर खायेंगे। पहले भी लोगों ने
सुनहरे सपने संजोये और कुछ लोग तो ऐसेे चले गए कि मुंह में एक बंूद पानी
डालने का भी मौका नहीं मिला। आज विदेषी खातों को लेकर उहापोह मची हुई है
और कहते हैं कि विदेषों से हमारी संधि है कि जिनका धन जमा है उनका नाम
नहीं बतायेंगे। एक प्रष्न ये उठता है कि अगर चोरों के नाम जनता नहीं
जानेगी तो उसे कैसे मालूम होगा कि सजा किसको दी जाएगी। अधर्म में अबके
विचार बदल गए।
मदिरा के नषे में सोचते हैं कि अपना धन पराया धन कोई फर्क नहीं, अपनी
स्त्री पराई स्त्री कोई फर्क नहीं। ऐसा अभेदवाद आता है। तो कृष्ण भगवान
ने कहा कि वर्णशंकरता बढ़ जाती है फिर किसी का दिल-दिमाग सही नहीं रहता।
बच्चे मारो, औरत मारो, आदमी मारो, पशु-पक्षी मारो, लूट लो और जो चाहे सो
करो काई लगाम नहीं। कुर्सी वालों को कुर्सी चाहिए। जिसको कुर्सी मिल गई
और जिसे नहीं मिली वह पाने की होड़ में दौड़ रहा है। प्रजा को कौन पूछता
है ? त्राहिमाम् मची हुई है। सबकी निगाहें ऊपर आसमान की तरफ उठ गई है।
आराम और शान्ति कैसे मिलेगी ? काग भुशुण्डि के शब्दों मेंः?
निज अनुभव मैं कहेंउं खगेशा।
बिन हरि भजन न जाहिं कलेशा।।
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