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परिवर्तन का समय निश्चित है

परिवर्तन का समय निश्चित है और उसी का इन्तजार हो रहा है। अपील के स्वर में बाबा जी ने कहा कि लोग शाकाहारी हो जांय तो अच्छा है वर्ना अशुद्ध आहार के दुष्परिणाम भोगने पड़ेंगे। दोनों भवों के पीछे जीवात्मा का घाट है वहां आ जाओ तो वहां सुख मिलेगा, आनन्द मिलेगा। जीवात्मा के ऊपर चढ़ी हुई जन्मों-जन्मों की गन्दगी उसी घाट पर धोई जाती हे। ऊपर के लोकों स्वर्ग बैकुण्ठ आदि में जाने का रास्ता मनुष्य शरीर में ही दोनों आंखों के पीछे से गया हुआ है। विचार करो क्या कोई रोगी किसी पुराने जमाने के प्रसिद्ध हकीम या वैद्य से अपनी बीमारी का इलाज करवा सकता है? क्या कोई फरियादी पुराने जमाने के किसी न्यायमूर्ति न्यायाधीश से अपने मुकदमें का फैसला करा सकता है? क्या कोई स्त्री किसी पुराने जमाने के शूरवीर से ब्याह करके सन्तान उत्पन्न कर सकती है ? कदापि नहीं। अगर यह बतें सम्भव नहीं तो कोई परमार्थ अभिलाषाी किसी गुजरे, महात्मा का आश्रय लेकर परमात्मा में लीन कैसे हो सकता है? सन्त-महात्मा अपने-अपने जमाने में दुनियां में आये। जिन्होंने उनकी शरण ली उन्हें जन्म-मरण से, आवागमन से मुक्त किया। समय पूरा होने पर
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गुरू जनु आवन को हैं, भये नभ मण्डल लाल।

जयगुरुदेव सत्संग के प्रारम्भिक दिनों में प्रेमी एक प्रार्थना गाते थे कि- गुरू जनु आवन को हैं, भये नभ मण्डल लाल। गुरू चेतन है। उसकी बैठक मनुष्य शरीर में दोनों आंखों के पीछे है। भजन ध्यान करके साधक अपनी चेतनता को सिमटा कर दोनों आंखों तक जब ले आता है फिर जीवात्मा धीरे से शरीर से अलग हो जाती है। और उपर के दिव्य मण्डलों का सफर करने लगती है। इसी क्रिया को जीते जी मरना कहते हैं। मन तीन प्रकार का होता है-पिण्डी मन, ब्रह्माण्डी मन तथा निज मन। पिण्डी मन शरीर में तीसरे तिल के नीचे वाले भाग में काम करता है। पिण्डी मन शरीर में तीसरे तिल के नीच ेवाले भ्ज्ञाग में काम करता है। इसकी वासनायें मलिन होती है तथा इसकी प्रवृत्ति बाहरपमुखी औश्र नीचे की ओर हेाती हे। इसका सम्बन्ध इन्द्रियों के साथ होता हे। आत्मा का इसके साथ्ज्ञ गहरा सम्बन्ध होने से आत्मा नीचे आ जाती है और मैली हो जाती है। ब्रह्माण्डी मन की इच्छायें अच्छी होती हैं और इसकी प्रवृत्ति अन्तर्मुखी और ऊपर की ओर होने के कारण यह आत्मा को उपर उठने में सहायता देता है तथा यह ब्रह्माण्ड में का मकरता हे। निज मन दूसरे पद यानी त्र

सत्संगियों को उपदेश

इस देह  मन्दिर में चैबीस घण्टे लगातार शब्द धुन हो रही है उसे रोज रोज सुनो। वह ईश्वरीय संगीत है जो हर घट में हो रही है जिस कदर फुरसत मिले उसे सुनते रहे। जितना सुनोगे उतना ही निर्मल हो जाओ। अन्तरमुख शब्द में सुरत को जोड़ना चाहिए। सतगुरू का स्वरूप हर वक्त पास है। हर वक्त डरते रहो और सोचो कि हमें संसार में नहीं रहना है क्योंकि देह स्वप्नमात्र है। जब देह झूठी है तो सब सामान दुनिया का झूठा है। नाम-धुन सच्ची है और उसे पकड़ो। अगर रेाज-रोज शब्द से, नाम से सच्ची प्रीति करोगे तो मन के सब विकार छूट जायेंगे और दुनियां की चाहें जो जन्म-मरण का मूल हैं मन से निकल जायेगी। फिर मन सतगुरू के प्रीति करेगा। हर वकत सतगुरू के वचन के अन्दर रखना चाहिए। जो कहा जाय उसे आंख मूंद कर करो उसमें सब प्रकार का हित है। नाम को, शब्द को जीवात्मा को कान से सुनने को ही भजन करते हैं ढोल मंजीरे पर गाने को भजन नहीं करते। भजन ईश्वरीय संगीत है।  नानक जी ने कहा है कि- नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन रात   परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सभी धर्मो से हाथ जोड़कर विनती प्रार्थना  और अपील की है की आप सब

सत्संग वचन

                                         सुगम पंथ मोहिं पावें प्राणी। आपको रास्ता जब मिल गया है तो भजन करो। जो प्रारब्ध उसने तुम्हारा बना दिया गया है वह तुमको रोज मिलेगा। इसलिए दुनियां में ज्यादा फंसो मत। काम आप सब करो। खेती का, दुकानदारी का और दफ्तर का। आपको कोई मना नहीं करता पर ईमानदारी से ओर मेहनत से काम करो। हम आपको रास्ता बताते हैं सीधा तो आपको दरवाजे पर बैठना ही पड़ेगा तभी दया होगी।  शाकाहारी रहो ताकि तुम पर हिन्सा का आरोप न लग जाऐ कहीं उसने तुम्हारे खाते में लिख दिया  और उसके कैमरे में छप गया तो बच नहीं सकते हो। आप सोचो। आपका लोक-परलोक दोनों चला गया तो आप कहाँ जाओगे? नर्कों और चैरासी में। अधिकारी किसी को पकड़कर ले जाता है तो अब वह चाहे जहाँ रखे तुम क्या कर सकते हो।  हमारे पास बड़े बड़े करोड़पति, अरबपति आते हैं और रोते हैं आकर कि बच्चों ने हमारा सब कुछ ले लिया, घर से बाहर कर दिया और हमें बिड़ी तक का पैसा नहीं देते। जब उनके बच्चों को समझाओं तो जाकर अपने माँ-बाप पर नाराज होते हैं कि तुमने जाकर शिकायत की। और करो। हम कुछ नहीं देंगे। तुम चले जाओ घर से। तो जो कुछ

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jaigurudev news-8.9.11

जयगुरूदेव समाचार मथुरा 8 सितम्बर 2011.        परम पूज्य बाबा जयगुरूदेव जी महाराज के आदेश से जगह-जगह सत्संगी-प्रेमी स्त्री-पुरूष व बच्चे-बच्चियां शाकाहारी कमीज़ पहनकर चारों तरफ प्रतिदिन भारत में फेरियां निकाल रहे हैं, नारे लगा रहे हैं किः- क्या खाने से हुए खराब, अण्डा, मछली मांस शराब। क्या खाने से होगी भलाई, साग, सब्जी, दूध, मलाई।        भारत में सत्ता पर काबिज रहने का संघर्ष चल रहा है। माया का खेल और उसकी बौखलाहट चरम सीमा पर है। देवता लोग उस प्रभु से प्रार्थना कर रहे हैं कि रावणों के खेल  को समाप्त करो ताकि जनता सुखमय जीवन बिताने के लिए एक नए युग में प्रवेश कर सके। देवताओं ने त्रेता में भी भगवान राम से यही प्रार्थना कि थी किः-? ''अब जनि राम खेलावहु येही।''        अर्थात रावण का वध कर दो ताकि जनता आतंकवाद के चुंगल से निकल जाए। बाबा जयगुरूदेव जी महाराज के शब्दों मेंः- ''पहले तो एक रावण था और अब तो घर-घर में रावण हैं और सभी रावण मारे जायेंगे।'' बाबा जी की भूली-बिसरी बातें        क्या कोई रोगी किसी पुराने जमाने के प्रसिद्ध वैद्य,हकीम से

बंदरो की किस्मत - एक प्रेमी का संस्मरण

  एक बार स्वामी जी महाराज बबराला गये जो जिला बँदायू मेँ पङता है । उन दिनोँ आर. बी. लाल साहब कस्टम एंड सेँट्रल एक्साइज मेँ इंसपेक्टर थे । उनके मकान पर स्वामी जी रुके थे । दोपहर मेँ स्वामी जी के साथ मैँ छत पर बैठा था । इतने मेँ दो चार बंदर आकर किनारे बैठ गये । स्वामी जी उनको देखते रहे फिर मुझसे बोले कि नीँचे जाकर इनके लिए कुछ खाने को ले आओ । एक झोले मेँ भूने चने रखे थे जिसे बहन जी ने मुझे दिया और मैने उसे लाकर स्वामी जी को दे दिया । स्वामी जी ने झोले से एक मुट्ठी चना निकाला और एक बंदर की तरफ दिखा कर बोले कि ले । वो बंदर कुछ देर तक तो स्वामी जी को देखता रहा फिर धीरे धीरे पास आया । स्वामी जी की मुट्ठी से उसने कुछ दाने निकालकर खाये फिर धीरे से स्वामी जी ने मुट्ठी बंद कर ली । फिर बंदर स्वामी जी की मुट्ठी खोलने लगा और स्वामी जी की तरफ देख कर कुछ कहता । मैँ डर गया कि कहीँ बंदर स्वामी जी को काट न ले । मेरा दिल धक धक कर रहा था । मैँने सोचा कि एक डंडा ले आऊँ । इतने मेँ स्वामी जी ने कहा कि चुपचाप बैठे रहो वर्ना ये सब तुमको काट लेँगे । इतनी देर मेँ 30-40 बंदर सभी छत पर आ गये । स्वामी जी एक-एक को ब