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Showing posts from February, 2011

guru maharaj khitora me satsang varsha karte huye

Jai Gurudev News - 10-Feb-2011

बसन्त पंचमी के दिन अपनी जन्मस्थली खितौरा जिला इटावा लगभग बीस गाड़ियों के साथ पहुंचने पर चारों तरफ के गांवों से नर-नारियों, बच्चे-बच्चियां दर्षन के लिए जयगुरूदेव जन्मस्थली पहुंचने लगे। कल अपने संक्षिप्त संदेष में बाबा जी ने ग्रामवासियों से कहा कि महात्मा के पास आने पर रास्ता लेकर अगर कोई जीव भजन नहीं करता है और गलती करता है और बात नहीं मानता है तो उसका कर्म भुगतान कराने के लिए वे उसे फिर से मानव जन्म दिला कर कर्म भुगतान कराते हैं मगर उसकी डोर छोड़ते नहीं हैं। कभी-कभी वे उसे चैरासी लाख यानियों में से किसी योनि में भी उतार देते हैं। रामायण में गोस्वामी जी ने कागभुषुण्डि-गरूण संवाद में सब कुछ विस्तार से समझाया है। कर्मों का भुगतान कराकर यहां तक उस जीव से भजन करा लेते हैं।  कलयुग की चर्चा करते हुए कागभुषुण्डि ने कहा कि छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, नर- नारी सब अधर्म मंे लिप्त हो जाते हैं, किसी को किसी का डर नहीं रहता है। ऐसे स्वेच्छाचारी लोग सुख की तलाष में इधर-उधर भागने लगते हैं और धर्म को छोड़कर चरित्र गवां देते हैं। फिर नियत खराब कर, धोखे-फरेब, बेइमानी से धन इकटठा कर लेते हैं और सोचत

सबसे अधिक पापी

एक बार देवताओं की सभा हुई। अनेक विषयों पर चर्चायें हुईं। इस बात पर भी निर्णय लिया गया कि जो सबसे पापी हो उसे देवताओं की सभा में आने से रोक दिया जाए। विचार-विमर्श के बाद यह तय हुआ कि गंगा जी सबसे अधिक पापी हैं। संसार के जीव जो गंगा जी में स्नान करते हैं सबके पापों को वो ले लेती हैं। इसलिए सबसे अधिक पापी गंगा महारानी को ठहराया गया। गंगा जी अपना स्पष्टीकरण देने के लिए खड़ी हुईं और हाथ जोड़कर विनम्र भाव से बोलीं कि मैं महापापिनी नहीं हूं। देवताओं के पूछने पर उन्होंने बताया कि संसार के मलीन जीवों का पाप मैं लेती तो अवश्य हूं जो मुझमें स्नान करते हैं मगर उन पापों को अपने पास नहीं रखती हूं। मैं समस्त पापों को ले जाकर समुद्र में डाल देती हूं। गंगा महारानी पाप मुक्त घाषित हुई और देवताओं ने समुद्र को महापापी बताया। समुद्र ने जब ऊपर आये संकट को देखा तो खड़े होकर दीन भाव से बोले कि मैं बिलकुल पापी नहीं हूं। गंगा जी जिन पापों को मुझे लाकर देती हैं उन्हें मैं मेघराज (बादल) को देता हूं। इस प्रकार मैं निष्कलंक रहता हूं। देवताओं ने समुद्र देवता के स्पष्टीकरण को सुनकर अपनी सहमति दी और फिर यह नि

होली सत्संग 18 से 23 मार्च 2011 तक मथुरा में होली 19 को जलेगी और 20 को रंग इत्यादि से खेला जायेगा...

होली सत्संग 18 से 23 मार्च 2011 तक मथुरा में होली 19 को जलेगी और 20 को रंग इत्यादि से खेला जायेगा। अपने यहां जिस प्रकार से होली खेली जायेगी-वो बताया जायेगा।  बाबा जयगुरूदेव ने प्रेमियों को संदेष देना चाहा, होली का षुभ अवसर आ रहा है। भारतवर्ष के लोग धम-धाम से होली मनाते हैं। प्रेमीजन मथुरा आते हैं और इच्छा करते हैं कि होली मथुरा में विविध रूप् से खेली जाती है, उसको भी देखें या सुनें। सुरत-षब्द, नामयोग की साधना इन सबके लिए प्रमुख है।  आप सब लोगों से प्रेम पूर्वक संदेष द्वारा ध्यान कराया जा रहा है कि होली आ रही है। आप होली केषुभ अवसर पर उसी तरह देखने को दिखाना जिस तरह भण्डारा होता है। सत्संग तो अन्दर के मण्डलों का और सुरतों के अपने घर पहुंचने का बताया जायेगा। बड़ी उत्सुकता से होली पर पहुंचें। सत्संग का समय: प्रातः 6.30 बजे से  सायं 5.00 बजे से। मथुरा आश्रम                                                                   हस्ताक्षर 07.02.2011  परम पूज्य स्वामी जी महाराज अध्यक्ष जयगुरूदेव धर्मप्रचारक संस्था एवं जयगुरूदेव धर्म प्रचारक ट्रस्ट मथुरा

बाबा जयगुरूदेव की आवाज कर्मों की गहन गति है। इसे योगी पुरूष ही समझते हैं। आपको ये नहीं बताया गया ...

बाबा जयगुरूदेव की आवाज  कर्मों की गहन गति है। इसे योगी पुरूष ही समझते हैं। आपको ये नहीं बताया गया कि मतदान देने का मतलब क्या है? मतदान यानि बुद्धि का दान। आप किसी को भी अपरा मतदान देते हैं इसका मतलब ये है कि आप उसके हर अच्छे-बुरे कर्म में समर्थन देते हैं आपने मतदान देकर लोगों को दिल्ली, लखनऊ पटना, जयपुर, भोपाल आदि स्थानों पर भेजा। अब वो तो जो भी अच्छा बुरा करेंगे तो आप को दुख भोगना पड़ेगा। इस रहस्य को आपने समझा नहीं। अब आप चिल्लाओ कोई सुनने वाला नहीं है। आपको चाहिए कि अच्छे चरित्रवान, सत्य और अहिंसावादी, निःस्वार्थ काम करने वालों को ले आते तो सुख मिलता। सुख मिलने वाला नहीं है आपको। महापुरूषों ने कहा है किः कर्म प्रधान विष्व रचि राखा जो जस करहिं सो तस फल चाखा।  अपने  लिए कर्म के अलावा मनुष्य को दूसरों के कर्मों को भी भोगना पड़ता है ऐसा ईष्वरीय विधान है। फिर कहा है किः- यह रहस्य रघुनाथ कर, वेगि न जाने कोय। से जाने जो गुरू कृपा, सपनेहुं मोह न होय।

Jaigurudev news - 7.2.2011

वर्तमान समय में सभी परेषान नजर आ रहे हैं। चाहे पैसे वाले हों, ओहदे वाले हों या सामान्य वर्ग हो, सभी के होठों पर एक ही प्रष्न है कि आगे क्या होगा। सभी में एक प्रकार का भय सा व्याप्त है, डर रहे हैं कि न जाने अब क्या होने वाला है। लोग आषंकाओं से भरे हुए  हैं, भयभीत हैं, नौकरी हो, व्यापार हो, मार्ग हो, तीर्थ स्थान हो, देवी-देवताओं के मन्दिर हों या घर चारों ओर असुरक्षा की भावना व्याप्त है। हर कहीं भय का साम्राज्य है। इसका उत्तर किससे मांगा जाए? क्या राजा से? लेकिन उनका जीवन तो सबसे अधिक असुरक्षित है, वे ही देष में सबसे अधिक सुरक्षा घेरे मंे रहते हैं। पूंजीपति भी डरे हैं और ओहदे वाले भी डरे हुए हैं। तो क्या इसका उत्तर साधरण जनता या गरीब किसान देंगे? नहीं, क्योंकि वे तो स्वयं ही त्रसित हैं। बाबा जयगुरूदेव की आवाज  कर्मों की गहन गति है। इसे योगी पुरूष ही समझते हैं। आपको ये नहीं बताया गया कि मतदान देने का मतलब क्या है? मतदान यानि बुद्धि का दान। आप किसी को भी अपरा मतदान देते हैं इसका मतलब ये है कि आप उसके हर अच्छे-बुरे कर्म में समर्थन देते हैं आपने मतदान देकर लोगों को दिल्ली, ल

बाबा जयगुरूदेव जी का संदेष भारत का जनमानुष आध्यात्मिक वायुमण्डल में पलता है। हर इंसान में रहम और ...

बाबा जयगुरूदेव जी का संदेष  भारत का जनमानुष आध्यात्मिक वायुमण्डल में पलता है। हर इंसान में रहम और दया की झलक मिलती है। श्रद्धा सेवा का प्रदर्षन है। कुछ सेवा मन से, बुद्धि से, तन से अन्य किसी चीज से की जाए तो ये श्रद्धा का, खुषी का सौदा है। इसको कोई रोक नहीं सकता। मनुष्य को खेषी उस समय होती है जब श्रद्धा से कोई सेवा करता है। जबर्दस्ती सेवा कराने वाला फिर उससे सबकी अश्रद्धा हो जाती है। इसको सोचो कि भारत वर्ष ऋषियों-मुनियों का, ज्ञानी-विज्ञानीयों का देष है। चोर का अन्न खाओगे तो चोर की बुद्धि बनेगी, हत्या करने वाले का अन्न खाओगे तो हत्या की बुद्धि बनेगी, जालिम का अन्न खाओगे तो जालिक हो जाओगे। झूठे चुगल खोरों का अन्न खाओगे तो चोर-चुगल की बुद्धि हो जाएगी, क्रोधियों का अन्न खाओगे तो क्रोध तुममे उमड़ पड़ेगा।षराब पीने वालों का अन्न खाओगे तोषराब पीने लगोगे। जैसी सोहबत करोगे वैसा ही असर होगा। अच्छो की सोहबत करोगे तो अच्छा असर और बुरों की सोहबत का बुरा असर।