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jaigurudev news-31.5.11


जयगुरूदेव समाचार
मथुरा 31 मई 2011.
       पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक ए.क्यू. खान ने कहा है कि उनके देश में
पिछले दस साल से बिना किसी रूकावट के परमाणु कार्यक्रम चल रहा है और
यूरेनियम संवर्धन की प्रक्रिया भी जारी है। जरूरत पड़ने पर कभी भी परमाणु
हथियार बनाये जा सकते हैं।
       बाबा जी मथुरा आश्रम पर हैं। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण बाबा जी अभी
बाहर निकलने की मौज में नहीं हैं। प्रेमियों को निर्देश दिया है कि भजन-
ध्यान , सुमिरन रोज-रोज करें। यह काम जरूरी है।
       दर्शन के लिए आए एक प्रेमी की बातों को सुनकर अपने संक्षेप संदेश में
कहा कि इस मनुष्य शरीर की दोनों आंखों के पीछे देवता रहते हैं। वह देश
सदा प्रकाशवान है, वहां अंधेरा कभी होता ही नहीं। देवताओं का शरीर मनुष्य
जैसा ही होता है मगर पंच भौतिक नहीं होता जैसाकि यहां मनुष्यों का होता
है। वह लिंग शरीर है जो 17 तत्वों का होता है। साधक जो साधना करते हैं वे
शरीर को छोड़कर ऊपर के दैविक लोकों में जाते हैं, देवताओं से मिलते हैं,
बातें करते हैं फिर वापस शरीर में लौट आते हैं। इसी क्रिया को जीते जी
मरना कहते हैं। रामायण में कहा है किः
जड़ चेतनहिं ग्रन्थि पड़ि गई।
छोड़त पख ग्रन्थि जो कोई,
तब यह जीव कृतारथ होई।

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गुरू जनु आवन को हैं, भये नभ मण्डल लाल।

जयगुरुदेव सत्संग के प्रारम्भिक दिनों में प्रेमी एक प्रार्थना गाते थे कि- गुरू जनु आवन को हैं, भये नभ मण्डल लाल। गुरू चेतन है। उसकी बैठक मनुष्य शरीर में दोनों आंखों के पीछे है। भजन ध्यान करके साधक अपनी चेतनता को सिमटा कर दोनों आंखों तक जब ले आता है फिर जीवात्मा धीरे से शरीर से अलग हो जाती है। और उपर के दिव्य मण्डलों का सफर करने लगती है। इसी क्रिया को जीते जी मरना कहते हैं। मन तीन प्रकार का होता है-पिण्डी मन, ब्रह्माण्डी मन तथा निज मन। पिण्डी मन शरीर में तीसरे तिल के नीचे वाले भाग में काम करता है। पिण्डी मन शरीर में तीसरे तिल के नीच ेवाले भ्ज्ञाग में काम करता है। इसकी वासनायें मलिन होती है तथा इसकी प्रवृत्ति बाहरपमुखी औश्र नीचे की ओर हेाती हे। इसका सम्बन्ध इन्द्रियों के साथ होता हे। आत्मा का इसके साथ्ज्ञ गहरा सम्बन्ध होने से आत्मा नीचे आ जाती है और मैली हो जाती है। ब्रह्माण्डी मन की इच्छायें अच्छी होती हैं और इसकी प्रवृत्ति अन्तर्मुखी और ऊपर की ओर होने के कारण यह आत्मा को उपर उठने में सहायता देता है तथा यह ब्रह्माण्ड में का मकरता हे। निज मन दूसरे पद यानी त्र...