-------------------------जय गुरुदेव------------------------------
संत मत के अभ्यासियों को इस सयमों का सम्मान रखना चाहिए
जो कोई संत मत शामिल होवे और उसके अनुसार अभ्यास शुरू करे, उसको यह सयंम वास्ते दुरुस्ती से करने अभ्यास सुरत शब्द मार्ग के दरकार है|
(1). मांस आहार न करे और न कोई नशे की चीज पीवे या खावे| हुक्का पीना नशे में दाखिल नहीं है|
(2). मामूली खाने से आहिस्ता-आहिस्ता करीब चौथाई हिस्से के कम कर देवे और बहुत चिकने चुपड़े और स्वाद के भोजन ज्यादा न खावे|
(3). सोने में कुछ कमी करे यानी आम तौर पर छ : घंटे से ज्यादा न सोवे|
(4). संसारी लोगों से जरुरत के मुआफिक (अनुसार) मेल और बर्ताव करे| उनसे ज्यादा मेल न रक्खे और बैगेर जरुरत के किसी संसारी मुआमले में दखल न देवें|
(5). संसारी पदार्थ और इन्द्रियों के भोगो की चाह फिजूल न उठावे और न उनके वास्ते फिजूल जतन करें , बल्कि जो भोग और पदार्थ मुयस्सर आवें उनमे में भी जिस कदर मुनासिब होवे , एहतिहात के साथ बर्ताव करे|
(6). वक्त अभ्यास के बेफायदा ख्याल दुनिया और उसके पदार्थों और भोगों के न उठावें और पुरानी आदत के मुआफिक (अनुसार) ऐसी गुनावन मन में पैदा होवे तो उसको जिस कदर जल्दी बने दूर हटावे नहीं तो अभ्यास में रस नहीं मिलेगा|
(7). सत्तपुरुष सतगुरु दयाल का किसी कदर खौफ दिल में रक्खे और उनकी प्रसन्नता में अपनी बेहतरी समझे और नाराजी में नुक्सान, परमार्थ और स्वार्थ का और उनके चरणों में दिन-दिन प्रीति और प्रतीत बढ़ता रहे|
(8). जहाँ तक मुमकिन होवे किसी जीव से विरोध और ईर्ष्या दिल में न रखे|
(9). पुण्य कर्म जिस कदर बन सकें करे और पाप कर्म से जहाँ तक बने बचता रहे |
(10). सतगुरु दयाल की दया का हरदम भरोसा मन में रख कर अपना अभ्यास नियम से हर रोज दो बार या ज्यादा करता रहे और पोथियों का भी थोडा पाठ किया करे की उससे अभ्यास और मन और इन्द्रियों की दुरुस्ती में मदद मिलेगी |
(11). सत्संग में शामिल होने का हमेशा शौक रक्खे और जब मौज से मौका मिले तब चेतकर होशियारी से वचन सुने और उनका मनन करके अपने लायक के वचन छाँट कर उनके मुआफिक कारवाई और बर्ताव शुरू करे|
(12). अपने मन और इन्द्रियों की चाल को निरखता चले यानी मन की चौकीदारी करे की नाकिस और पाप कर्मों और ख्यालों में न जावे और जहां तक बने मन और माया के हाथ से धोखा न खावें |
(13). सच्चे परमार्थी यानी प्रेमी जन से मोहब्बत करे और जब वे मिल जावें शौक के साथ उनका संग और खातिरदारी और जो मौका होवे तो मेहमानदारी करे |
(14). अपने वक्त का ख्याल रक्खे की जहाँ तक मुमकिन होवे , फिजूल और बेफायदा कामों और बातों में मुफ्त खर्च न होने पावे|
(15). जब तक कुल मालिक सतगुरु दयाल को सर्वसमर्थ और सर्वज्ञ समझा तो कुछ भी स्वार्थ और परमार्थ के मुआमिले में पेश आवे उसको उनकी मौज समझना चाहिए और चाहे वह मन के मुआफिक होवे या नहीं , उस मौज के साथ मुवाफिकत करना चाहिए यानी तकलीफ को धीरज के साथ बर्दास्त करना चाहिए और तरक्की यानी सुख में परमार्थ में गाफिल होना नहीं चाहिए|
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