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Jaigurudev Samachar Date : 18-Jan-2011

कल पूर्णमासी है। परम पूज्य बाबा जयगुरूदेव जी महाराज मथुरा में रहेंगे ऐसी सम्भावना है, अतः सत्संग मिलने की लालसा में बहुत से प्रेमी कई जिलों व प्रान्तों से आज राज तक मथुरा पहुंच जाऐंगे ऐसी सूचनायें मिल रही हैं। बाबा जी ने प्रेमियों से कहा है कि समय की कदर करनी चाहिए। चूक जाने पर पछतावा ही होता है। मालिक की दया हो रही है। थोड़ा मन को रोककर भजन-ध्यान में बैठोगे तो अनुभव अवश्य होगा। ऊपर में बड़े-बड़े मण्डल हैं जहां जीवात्मायें रहती हैं। स्वर्ग है, बैकुण्ठ है, शक्तिलोक हैं, ईश्वरलोक है, ब्रह्मलोक है। उधर अन्धेरा नहीं है प्रकाश ही प्रकाश है। सुरत (जीवात्मा) जब शरीर से अलग होकर उन लोकों में भ्रमण करती है तब उसे सच्चा आनन्द प्राप्त होता है। इसी को जीते जी मरना कहते हैं। करोगे तो पाओगे, नहीं करोगे तो नहीं पाओगे।
स्विटजरलैण्ड के बैंकों में राजनेताओं, व्यावसायियों आदि के अकल्पित धन जमा हैं जिसके बारे में विकिलीक्स वेबसाइट पर जल्द ही देखने को मिल सकता है ऐसी सूचनायंे पत्रिकाओं के माध्यम से मिलती रहती हैं। इस मामले में अन्य देशों की अपेक्षा भारत के लोगों का धन सर्वाधिक है।
बाबा जयगुरूदेव जी की आवाज
मैं भारत की जनता को जगा दूंगा। मुझे कुछ नहीं चाहिए। बाबा जी का ढिंढोरा ऐसे ही नहीं पिट रहा है। कोई बात जरूर है। बाबा जी ने गांव-गांव में अपने संदेश को फैला दिया है। आप बच्चों को बचाइये। बच्चों के भविष्य को बचाइये, बच्चों की शक्ति को बचाइये। देश का बच्चा अपना है। वक्त आगे आने पर बच्चे जब खड़े हो जायेंगे तो गलत पाने पर अपने बाप को भी नहीं माफ करेंगे। वक्त का इन्तजार तो करना ही पड़ेगा। भारी परिवर्तन होगा।

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गुरू जनु आवन को हैं, भये नभ मण्डल लाल।

जयगुरुदेव सत्संग के प्रारम्भिक दिनों में प्रेमी एक प्रार्थना गाते थे कि- गुरू जनु आवन को हैं, भये नभ मण्डल लाल। गुरू चेतन है। उसकी बैठक मनुष्य शरीर में दोनों आंखों के पीछे है। भजन ध्यान करके साधक अपनी चेतनता को सिमटा कर दोनों आंखों तक जब ले आता है फिर जीवात्मा धीरे से शरीर से अलग हो जाती है। और उपर के दिव्य मण्डलों का सफर करने लगती है। इसी क्रिया को जीते जी मरना कहते हैं। मन तीन प्रकार का होता है-पिण्डी मन, ब्रह्माण्डी मन तथा निज मन। पिण्डी मन शरीर में तीसरे तिल के नीचे वाले भाग में काम करता है। पिण्डी मन शरीर में तीसरे तिल के नीच ेवाले भ्ज्ञाग में काम करता है। इसकी वासनायें मलिन होती है तथा इसकी प्रवृत्ति बाहरपमुखी औश्र नीचे की ओर हेाती हे। इसका सम्बन्ध इन्द्रियों के साथ होता हे। आत्मा का इसके साथ्ज्ञ गहरा सम्बन्ध होने से आत्मा नीचे आ जाती है और मैली हो जाती है। ब्रह्माण्डी मन की इच्छायें अच्छी होती हैं और इसकी प्रवृत्ति अन्तर्मुखी और ऊपर की ओर होने के कारण यह आत्मा को उपर उठने में सहायता देता है तथा यह ब्रह्माण्ड में का मकरता हे। निज मन दूसरे पद यानी त्र...