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Jaigurudev Samachar Date : 14-Jan-2011

आज मकर सक्रांती का पर्व है। प्राप्त जानकारी के अनुसार परम पूज्य बाबा जयगुरूदेव जी महाराज की आज दिन में 3 बजे सत्संग की मौज है। सत्संगी-प्रेमी समय से पधार सकते हैं।
आज का यह वह समय है जब भ्रष्टाचार, घोटाले पर हर दिन कुछ न कुछ सुनने को मिलता है। ज्यादातर यह आरोप-प्रत्यारोप की षक्ल में ही होता है। स्वार्थ की लड़ाई बहिर्मुखी है लेकिन परमार्थ की लड़ाई अन्तरमुखी है और अपने आप से लड़ाई करनी पड़ती है। दूसरों से तू-तू, मैं-मैं कर लेना, भली-बुरी, खरी-खोटी सुन लेना और सुना देना तो आसान है लेकिन अपने षीषे में आगे खड़े होकर अपने आप को सुधारना बहुत कठिन है। इसीलिए कबीर साहब ने कहा किः-
षीष उतारे भुइं धरे,
तब पैठे घर माहिं।
आज चारों तरफ संघर्ष ही संघर्ष है और राजनीति तो संघर्ष का अखाड़ा बन गई। ‘‘तूने 2 जी घोटाला किया’’ तो दूसरा कहता है कि ‘‘तूने आदर्ष घोटाला किया’’ कोई कहता है कि ‘बोफौर्स घोटाला किया’’ तो कहीं खेल घोटाले का षोरगुल है। अब राजनीति इस बात पर आकर अटक गई है कि ‘तू कहे मेरी मैं कहूं तेरी’। जो कुछ हो रहा है वो सब खबरों में जनता जनार्दन सुन रही है और समझ रही है। अब फैसला जनता जनार्दन को करना है कि वो क्या चाहती है। वो कैसी राजनीति चाहती है और कैसे लोगों को चाहती है। घोटालों की हायतौबा तो सच है ही, मंहगाई अलग सुरसा की तरह मुंह बाय चली आ रही है। क्या हो गया है ?
बाबा जी ने बहुत पहले कहा था कि आगे-
वक्त बदलने वाला है
जनता जगने वाली है
बाबा जी मथुरा आश्रम पर है। देष व दुनियां का समाचार रोज सुनते हैं। बाबा जी चुप हैं और वह इस बात का संकेत है कि कुदरत अब अपना खेल करने जा रही है।
बाबा जयगुरूदेव जी की आवाज
ग्वालियर में बाबा जी ने सत्संग में कहा कि जब हर कौम के लोग आपस में मिलना-जुलना, बैठना, खाना-पीना एक जगह करने लगते हैं और किसी के प्रति कोई भेदभाव नहीं रखते हैं उस समय संसार की अवस्था पतन की हो जाती है। ऐसी हालत में भगवान की चिन्तन करना बड़ा मुश्किल हो जाता है।
अब आदमी को अच्छा मकान चाहिऐ, सड़कें अच्छी चाहिऐ ताकि कीचड़ में चलने को न मिले, कपड़ा अच्छा हो,खाना भी अच्छा हो और भांति-भांति के व्यंजन मिलें, महीन कपड़ा पहनने को मिले। ऐसी भावना जब मनुष्यों में आ जाती है तो यह समझना चाहिऐ कि दुनियां का रूख गिरने वाला है।
मनुष्य अपना ही पेट भरना जाने, दूसरों का सत्कार न कर सके, परिवार-परिवार में लड़ाई हो, घर-घर मंे फूट हो जाये, स्त्री पति का कहना न माने बल्कि पति पर अपना रूआब जमाती हो और पति के आगे ऊंची जगह पर बैठती हो चाहे पति जमीन पर ही क्यों न बैठा हो तो ऐसे समय में धर्म का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। अब स्त्रियां पुरूषों की बातों को मानने की कौन कहे उल्टे लड़ने लगीं और यही हाल पुरूषों का हो गया कि स्त्रियों से हजारों झूठ बोलने लगे और फिर उन्होंने अपना विश्वास खो दिया। पहले स्त्रियां धर्म की रक्षा करती थीं और अब वे अण्डा, शराब, मांस, सिगरेट आदि का व्यसन करने लगीं हैं ऐसी हालत में चरित्र कहां ठीक रह सकता है। देश में वर्णशंकर संतान हो जाने पर सृष्टि में बड़े पैमाने पर संहार हो सकता है। कुछ ही समय बाद भण्डा फूटने वाला है और अधिक संख्या में मनुष्यों की क्षति होगी। यदि धर्म को नहीं अपनाया गया तो शान्ति कदापि नहीं मिलेगी।

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