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सत्संगियों को उपदेश

इस देह मन्दिर में चैबीस घण्टे लगातार शब्द धुन हो रही है उसे रोज रोज सुनो। वह ईश्वरीय संगीत है जो हर घट में हो रही है जिस कदर फुरसत मिले उसे सुनते रहे। जितना सुनोगे उतना ही निर्मल हो जाओ। अन्तरमुख शब्द में सुरत को जोड़ना चाहिए। सतगुरू का स्वरूप हर वक्त पास है। हर वक्त डरते रहो और सोचो कि हमें संसार में नहीं रहना है क्योंकि देह स्वप्नमात्र है। जब देह झूठी है तो सब सामान दुनिया का झूठा है। नाम-धुन सच्ची है और उसे पकड़ो। अगर रेाज-रोज शब्द से, नाम से सच्ची प्रीति करोगे तो मन के सब विकार छूट जायेंगे और दुनियां की चाहें जो जन्म-मरण का मूल हैं मन से निकल जायेगी। फिर मन सतगुरू के प्रीति करेगा। हर वकत सतगुरू के वचन के अन्दर रखना चाहिए। जो कहा जाय उसे आंख मूंद कर करो उसमें सब प्रकार का हित है। नाम को, शब्द को जीवात्मा को कान से सुनने को ही भजन करते हैं ढोल मंजीरे पर गाने को भजन नहीं करते। भजन ईश्वरीय संगीत है।
 नानक जी ने कहा है कि-
नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन रात
 
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सभी धर्मो से हाथ जोड़कर विनती प्रार्थना 
और अपील की है की आप सब लोग शाकाहारी हो जाये !
बाबा जी का कहना है शाकाहारी रहना है

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गुरू जनु आवन को हैं, भये नभ मण्डल लाल।

जयगुरुदेव सत्संग के प्रारम्भिक दिनों में प्रेमी एक प्रार्थना गाते थे कि- गुरू जनु आवन को हैं, भये नभ मण्डल लाल। गुरू चेतन है। उसकी बैठक मनुष्य शरीर में दोनों आंखों के पीछे है। भजन ध्यान करके साधक अपनी चेतनता को सिमटा कर दोनों आंखों तक जब ले आता है फिर जीवात्मा धीरे से शरीर से अलग हो जाती है। और उपर के दिव्य मण्डलों का सफर करने लगती है। इसी क्रिया को जीते जी मरना कहते हैं। मन तीन प्रकार का होता है-पिण्डी मन, ब्रह्माण्डी मन तथा निज मन। पिण्डी मन शरीर में तीसरे तिल के नीचे वाले भाग में काम करता है। पिण्डी मन शरीर में तीसरे तिल के नीच ेवाले भ्ज्ञाग में काम करता है। इसकी वासनायें मलिन होती है तथा इसकी प्रवृत्ति बाहरपमुखी औश्र नीचे की ओर हेाती हे। इसका सम्बन्ध इन्द्रियों के साथ होता हे। आत्मा का इसके साथ्ज्ञ गहरा सम्बन्ध होने से आत्मा नीचे आ जाती है और मैली हो जाती है। ब्रह्माण्डी मन की इच्छायें अच्छी होती हैं और इसकी प्रवृत्ति अन्तर्मुखी और ऊपर की ओर होने के कारण यह आत्मा को उपर उठने में सहायता देता है तथा यह ब्रह्माण्ड में का मकरता हे। निज मन दूसरे पद यानी त्र...